@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
एक पल आया था
जब लगा मुझे
कह दूं कि
मेरे हाथों में
ये बैसाखियाँ
मेरी नहीं हैं
पर मैं झूठ नहीं बोल पाया
फिर लगा कह दूं कि
इन बैसाखियों से
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
मैं इनसे कभी नहीं हारा
पर मैं झूठ नहीं बोल पाया
चाहता था तुम्हें कहना कि
मेरे हाथ थाम सकते हैं
तुम्हारे कोमल हाथों को
किन्तु सच तो ये था
कि मेरे हाथ बंधे थे
उन बैसाखियों से
जो किसी और की नहीं
बल्कि मेरी अपनी ही थीं
मैं झूठ नहीं बोल पाया
इस तरह वो पल आया
एक पल ठहरा, बह गया
और मैं तन्हा रह गया
तुम्हारी यादों के साथ
लिये बैसाखियां हाथ
मुझे याद है जीवन ने
एक गीत मधुर गाया था
हाँ, वो एक पल आया था............................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::
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