@2015 बस यादेँ सिर्फ यादेँ..........
ऐसा अपनापन भी क्या जो अजनबी महसूस हो,
साथ रहकर भी मुझे तेरी कमी महसूस हो,
आग बस्ती में लगाकर बोलते हैं, यूँ जलो,
दूर से देखे कोई तो रोशनी महसूस हो,
भीड़ के लोगों सुनो, ये हुक्म है दरबार का,
भूख से ऐसे गिरी कि बन्दगी महसूस हो,
नाम था उसका बगावत कातिलों ने इसलिये,
क़त्ल भी ऐसे किया कि खुदकुशी महसूस हो,
शाख़ पर बैठे परिन्दे कह रहे थे कान में,
क्या रिहाई है कि हरदम बेबसी महसूस हो,
फूल मत दे मुझको, लेकिन बोल तो फूलों से बोल,
जिनको सुनकर तितलियाँ-सी ताज़गी महसूस
हो,
शर्त मुर्दों से लगाकर काट दी आधी सदी,
अब तो करवट लो कि जिससे ज़िंदगी महसूस
हो,
सिर्फ़ इतने पर बदल सकता है दुनिया का
निज़ाम,
कोई रोये, आँख में सबकी नमी महसूस हो...........
****** नितिश श्रीवास्तव ******
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