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Wednesday 4 December 2013

मैं याद आऔंगा










@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
मैं याद आऔंगा 
जब तन्हा राहों पे जाओगे 
जितने कदम तुम उठाओगे 
कभी दरख्तों की छाओ में
सोचो मुझे सर्द सी आहों में
आँखों से जब मेरा इंतेज़ार बहाओगे
में याद आऔंगा 
जाओ जो तुम सपनो के सफर में,
जागोगे जो महकी सेहेर में
कुछ केहते केहते जो तुम खो जाओगे
मैं याद आऔंगा
मन पुकारे तुझे संग
छुपी हेई तेरे दिल में ऐसी कोई धुन
चुपके से कोई भी सरगोश हो
जागो तो फिर भी खामोश हो
ना होगा कोई पास इक होगी आस
याद आयेगी वो बात थामो जो कोई हाथ
मैं याद आओंगा
जब दिल से तुम मुस्कुराओगे
जो याद आओं तो अश्‍क़ कैसे फिर रोक पाओगे
में याद आऔंगा ...................................................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::

मैं अकेला तो नहीं था















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
मैं अकेला तो नहीं था,
अब कैसे हो गया?
मानो सब कुछ एक पल मैं खो गया,
ज़िंदगी की हकीकत सामने आई,
सब भ्रम मिट गया,
सच्चाई छाई..
क्यूं मान रहा था खुद को सबसे सुखी?
उस गुरूर के सामने अब नज़रें झुकी, 
अब चैन बस तब ही मिल सकता है,
मिट जायें इश्स दिल की डाइयरी के पन्ने सभी..
उस शोर की तो मानो मंज़िल ही ढह गयी,
अब तो बस अकेलापन अछा लगता है..
वो हंसी, वो शोर..अब हमे कहाँ जाचता है?
काश! क्यूं ना हम पहले से ही अकेले होते
क्यूं ये बोझ झूठी यादों का धोते..
ना आये अब यहाँ कोई और
मैं देखना चाहता हु अब दुनिया का छोर
इश्स दुख के लिये
खुदा मैने क्यूं वो सब सुख साहा? ? ?
मैं अकेला तो नहीं था
अब कैसे हो गया? ? ?
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

एक पल आया था















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
एक पल आया था
जब लगा मुझे
कह दूं कि
मेरे हाथों में
ये बैसाखियाँ
मेरी नहीं हैं
पर मैं झूठ नहीं बोल पाया
फिर लगा कह दूं कि
इन बैसाखियों से
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
मैं इनसे कभी नहीं हारा
पर मैं झूठ नहीं बोल पाया
चाहता था तुम्हें कहना कि
मेरे हाथ थाम सकते हैं
तुम्हारे कोमल हाथों को
किन्तु सच तो ये था
कि मेरे हाथ बंधे थे
उन बैसाखियों से
जो किसी और की नहीं
बल्कि मेरी अपनी ही थीं
मैं झूठ नहीं बोल पाया
इस तरह वो पल आया
एक पल ठहरा, बह गया
और मैं तन्हा रह गया
तुम्हारी यादों के साथ
लिये बैसाखियां हाथ
मुझे याद है जीवन ने
एक गीत मधुर गाया था
हाँ, वो एक पल आया था............................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

जलाई जो तुमने


















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
जलाई जो तुमने-
है ज्योति अंतस्तल में ,
जीवन भर उसको
जलाए रखूंगा
तन में तिमिर कोई
आये न फिर से,
ज्योतिर्मय मन को
बनाए रखूंगा.
आंधी इसे उडाये नहीं
घर कोइ जलाए नहीं
सबसे सुरक्षित
छिपाए रखूंगा.
चाहे झंझावात हो,
या झमकती बरसात हो
छप्पर अटूट एक
छवाए रखूंगा
दिल-दीया टूटे नहीं,
प्रेम घी घटे नहीं,
स्नेह सिक्त बत्ती
बनाए रक्खूँगा.
मैं पूजता नो उसको ,
पूजे दुनिया जिसको ,
पर, घर में इष्ट देवी
बिठाए रखूंगा.......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::

पश्चिम में डूबते सूरज ने














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
पश्चिम में डूबते सूरज ने
हज़ारों रंग थे बिखराए
कई तो आंखो के आगे
पहले कभी नहीं थे आए!
घड़ा चांद का आकाश में लटका
उड़ेल रहा था चांदनी
दृष्टि की सीमा तलक
ठोस, गहरे अंधेरे से बनी
बिखरी हुई थीं पहाड़ियाँ
नीरवता के बोल बोलती
उस घाटी में बिजली नहीं थी
कोई आहट, कोई आवाज़
सरसराहट भी कोई नहीं थी
ख़ामोश बिल्कुल… ख़ामोश!
धरती के उस कोने में
मैं विशुद्ध प्रकृति से मिला था
अपने कमरे की खिड़की से
अनछुए, अविकार, अविचल
निसर्ग के सच को देख रहा था
रंग, चांदनी, नीरवता
मन को हर्षित करते थे
हल्का अंधियारा, निपट एकांत
और थोड़ा-सा सूनापन
इस मन में शांति भरते थे
मैं आनंद की झील बना था
जिसमें लहर कोई ना उठती थी
संगीत भरी मन की नदिया थी
जो ना बहती थी ना रुकती थी
कई दिन बीत चुके हैं लेकिन
आज भी संध्या जब-जब
घड़ा चांद का भर-भर
चांदनी को बिखराती है
अनायास ही वो मुझे
इक खिड़की की याद दिलाती है........................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::