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Sunday 23 June 2013

विरह अगन सी तपन कहाँ है, दुनिया भर की आगों में,
















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
विरह अगन सी तपन कहाँ है, दुनिया भर की आगों में,
पिरो लिए कंचन से मोती, प्यार के पक्के धागों में,
भीग रही है धरती सारी, छलक रही इन बूँदों से,
तुम कहते हो आँख के आंसू, सूख गये सब यादों में.
या तो इस मौसम से कह दो, इतना मत हैरान करो,
या कि तुम खुद ही आ जाओ, इस दिल पर अहसान करो,
अब तक मैने जीवन काटा, निविड़ मावसी रातों सा,
मेरी राहें रोशन कर दो, जीना कुछ आसान करो.
सोच रहा हूँ आखिर कब तक, तन्हाई को सहना है
मेरी आँखें सब कहती हैं, मुझे नहीं कुछ कहना है,
साँस मेरी है चलती जाती, केवल इक इस आशा में,
एक दिवस पत्थर पिघलेगा, मुझको जिन्दा रहना है.........................

::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Wednesday 12 June 2013

आदमीं क्यों आज का, इतना बदलता जा रहा,















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
आदमीं क्यों आज का, इतना बदलता जा रहा,
जो हकीकत है नहीं, उससे बहलता जा रहा .
झूठ सच में अब इसे, दिखता नहीं कुछ भेद है,
या खुदा! ये कौन से साँचे में ढलता जा रहा .
ये शिकायत से भरा, दिन रात करता है गिला,
देख के सुख चैन औरो का, मचलता जा रहा .
फर्क पड़ता है नहीं, आंसू बहे जो औरो के,
सुख हैं मेरे काम, यही कह कर फिसलता जा रहा.
सच से कोसों दूर होके, वक़्त से मजबूर होके,
इश्स जहाँ में रात दिन, यूं ही टहलता जा रहा.
या खुदा ये इल्तिजा है, तेरे दम से ये फ़िज़ा है,
तू "जतन" जब साथ है तो, क्यों दहलता जा रहा..................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Tuesday 11 June 2013

सूरज की नन्हीं किरणें














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
सूरज की नन्हीं किरणें
चुपके से उतर आईं हैं घर के अंदर
और खेल रहीं हैं छुपनछुपाई
खुशी से खुल गईं हैं खिड़कियाँ
हवा की शुद्धता हृदय में घुल रही हैं
ये सुबह तुम्हारी है।
खेतों की तरफ़ जा रहे हैं किसान
गाँव त्यौहार की तैयारी कर रहा है
कारखानों की तरफ़ बढ़ रहे हैं मज़दूर
चूल्हों के पास
अगले दिन की रोटी का इंतज़ाम है
टहल कर घर लौट रहे हैं पिताजी
घर में गूँज रहा है जीवन संगीत
ये सुबह तुम्हारी है।
दस्तक दे रहा है अख़बार
मुस्करा रहा है पहली बार
आज उसके अंदर
बुरा कम अच्छा ज़्यादा है
ये सुबह तुम्हारी है
कलम के आस-पास जुटे हुए हैं अक्षर
वर्षों बाद आग्रह कर रहे हैं
एक प्रेम कविता की
एक लड़की
पृथ्वी की तरह नज़र आ रही है
और उसकी परिधि पर बैठा कबूतर
गुटर गूं कर रहा है .....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Sunday 9 June 2013

सागर तट पर खड़ा किन्तु मैं प्यासा का प्यासा
















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
साथियों ..
सागर तट पर खड़ा किन्तु मैं प्यासा का प्यासा ,
लहराती है जलराशि अपार नित नयनो के आगे,
मन में विचार अनगिनती उसको देख देख जागे,
कैसी यह रही बिषमता जीवन जीवन बीच घनी,
एक डाह ह्रदय की जला चुकी अधरों की अभिलाषा,
सागर तट पर खड़ा किन्तु मैं प्यासा का प्यासा,
कितना अपकार भरा जग अर्पित जिसको प्राण किये,
रिसने वाले नित घाव मर्म में उसने बहुत दिए,
अपमानित होते फिरे मूल्य नैतिकता के प्रतिदिन,
बैठा जो आँखें मूंदे पढ़े क्या नयनो की भाषा ?
सागर तट पर खड़ा किन्तु मैं प्यासा का प्यासा,
नकली निकले सब रत्न यत्न सब गए अकारथ ही,
घिरा कौरवो के बीच चकित है युग का अभिमन्यु भी,
दया दिखाने जो भी आये विष और घोल गए,
स्वयं धधक जो रही दिशाएं करू उनसे क्या आशा,
सागर तट पर खड़ा किन्तु मैं प्यासा का प्यासा............

::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Saturday 8 June 2013

जिंदगी कई बार हमें अंधेरे में लाके छोड़ देती है















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
जिंदगी कई बार हमें अंधेरे में लाके छोड़ देती है 
दर्द में बेहाल बेबस छोड़ देती है
ना मैं नज़र आता हूँ ना रास्ता नजर आता है
दूर तक बस अँधेरा नज़र आता है
तड़पता हूँ रोता हूँ
झड़ता हूँ बिगड़ता हूँ
फ़िर लाचार सा गिर जाता हूँ
ठोकरों के शहर में बिना मरहम दिल तोड देती हैं
जिंदगी कई बार अंधेरे में लाके छोड़ देती है
सोच के कुछ घोडे दौड़ने लगते है
छुटे साथी , जी को झंक्झोरने लगते है
फ़िर अचनाक से एक हीरा चमकता है
अंधेरे में रोशन सा नज़र आता है
उसे पाके मैं मचल पड़ता हूँ
उसी अंधेरे में चल पड़ता हूँ
रोशनी मिलती है हौसला मिलता है
रास्ता जैसे कदमो के साथ चलता है
बदलता कुछ नही पर सब कुछ बदलता है
जानते है वो हीरा कौन है ?
वो हीरा मैं हूँ और वो अँधेरा कोयले की खान है
जिंदगी बस कुछ देर मुझे मेरे साथ अकेला छोड़ देती है .................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

मीलों चलता चलता जब में थक जाता हुँ















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
मीलों चलता चलता जब में थक जाता हुँ
रुकता हुँ दम भर को ,
क्या सब रुक जाते है ?
खुशियों के कई ढेर लगा कर में हसंता रहता हूँ
मुस्काता हुँ खो जाता हूँ ,
क्या सब खो जाते हैं ?
बादक के मतवारे मौसम में बह जाता हुँ ,
ठंडी हवा में उड जाता हूँ ,
क्या सब उड़ जाते है ?
मेरे सपने मिलकर मुझसे जब खो जाते है
मैं ड़र जाता हूँ ,रो जाता हूँ ,
क्या सब रो जाते है ?
देख कर अपनो को खुश होता हूँ ,
एक ही रंग में रगं जाता हूँ ,
क्या सब रगं जाते हैं ?
दुनिया के सब करतब देख में हैरान रह जाता हूँ ,
जादू सी दुनिया में जादू सा हो जाता हूँ
क्या सब हो जाते हैं ?
चोट जब दिल को लगती है टूट जाता हूँ ,
लड़ता हूँ , अल्लाह अल्लाह करता हूँ ,
क्या सब करते है ?
क्या में जो जो करता हूँ सब करते है ?
जीवन के सुख-दुख मे कठपुतली से ,
क्या सब हो जाते हैं ?
मासुम सा बच्चा हूँ इन्सान के दिल में बसता हूँ ,
मैं इन्ही कारणो से इन्सान कहलाता हु ,
क्या सब कहलाते है ..............................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

जो बुज़ुर्गों ने हम पर किये हैं














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
जो बुज़ुर्गों ने हम पर किये हैं, 

इनके एहसान ना भूल जायें.
बन के लाठी सदा चलें हम, 

फ़र्ज़ अपने हमेशा निभायें.
दूध माँ ने पीला कर है पाला, 

थाम उंगली पिता ने चलाया.
रात-दिन करके दोनो ने सेवा, 

खुद जागे और हमको सुलाया.
ऐसी निष्काम का बदला, 

प्यार-सत्कार से हम चुकायें बन के लाठी...
तुम बनो डॉक्टर, जड्ज, मिनिस्टर, 

तुम पे क़ुर्बान की पूँजी सारी.
पूज-पाठ और नमाज़ आडया की, 

चाही हर पल भलाई तुम्हारी.
मारी ठोकर तो रब को रुसाया, 

की जो पूजा तो लोगे दुआयाएं बन के लाठी...
शब्द उंचा कभी राम जी ने, 

आगे माता-पिता के ना बोला.
सुनते आये हैं श्रावण की गाथा, 

अपने जीवन में वो रंग ना घोला.
वो जो जी के गये ज़िंदगानी, 

ऊस पे चल के जीवन सजायें बन के लाठी...
बीस बंदों के जिसने अकेले, 

हर तरह से निभाये थे नाते.
ऊस अकेले को थोड़ा सा बोझा, 

मिलके सारे उठा नहीं पाते.
राह टू ही दिखा आए खुदाया, 

बोझ बंदों का बंदे उठायें बन के लाठी...
आज ये हैं जहाँ काल तुम्हे भी, 

इश्स डगर से गुजरना पड़ेगा.
बीज बोये हैं जो काटने का, 

कर्म तुमको भी करना पड़ेगा.
सोचो, समझो, ज़रा नौजवानों, 

वक़्त रहते ही हम जाग जायें.
बन के लाठी सदा चलें हम, 

फ़र्ज़ अपने हमेशा निभायें............
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Friday 7 June 2013

क्या सही है जो कल था



















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
क्या सही है जो कल था,
या जो मैंने चुना ?
या जो आज है ?
या जो कल होगा ?
जिंदगी तू हर जवाब में सवाल क्यों है ?
इतना होकर भी खालीपन का एहसास क्यों है ?
सब पाकर भी और पाने की आस क्यों है ?
सवारने चला था जिंदगी को,
पर फिर भी जिंदगी की मार क्यों है ?
किसी को तो तूने बताया होगा जिंदगी का सार,
फिर भी इस जवाब की तलाश क्यों है ?
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::


कभी ओस बनके ढलकी कभी आंसुओ की निशानी

























"कभी ओस बनके ढलकी कभी आंसुओ की निशानी ,
कविता नहीं जज्बात है मेरे बस इतनी सी मेरी कहानी "

जिंदगी का हर दिन ईश्‍वर की डायरी का एक पन्ना है 

तरह तरह के रंग बिखरते है इसपे कभी लाल, पीले, हरे तो कभी काले सफेद ...............
और हर रंग से बन जाती है कविता . कभी खुशियो से झिलमिलाती है 
कविता तो कभी उमंगो से लहलहाती है 
तो कभी उदासी और खालीपन के सारे किस्से बयाँ कर देती है कविता ..........
हाँ कविता मेरे जज्बात और एहसास की कहानी है 
तो मेरी जिंदगी के हर रंग से रुबरू होने के लिये पढ़ लीजिये
" नीतीश श्रीवास्तव " की " जीवन की कुछ अनकही यादें " " धुंधली यादें "
जो हमे याद तो आती है मगर हम किसी से कह नहीं पाते उसे समझा नहीं पाते 
और मन ही मन मे उलझानो के तार बुनते रहते है ...................

Thursday 6 June 2013

कुछ बातें है उन लम्हों की

          @ 2009 बस यादें सिर्फ यादें ...................

        कुछ बातें है उन लम्हों की 
                 जिन लम्हों में वो आदरणीय रहे 
          खुशियों से भरे जज्बात रहे 
      एक उम्र गुजारी है हमने 
       जहाँ रोते हुए भी हस्ते थे 
           कुछ कहते थे कुछ सुनते थे 
             हम रोज सुबह जब मिलते थे 
        तो सबके चेहरे खिलते थे 
             फिर लुफ्त वो मंजर होता था
                 फिर मिलकर सब बातें करते थे
          हम सोचो कितना हस्ते थे
      वो गूंज हमारे हसने की
उनके जाने के बाद
        अब जैसे थम सी गयी है
            कोई साया रहा न सिर पर
                         उनकी कमी हमें आज भी खलती है
           अब एक पुरानी याद बनी
        ये बातें है उन लम्हों की
                                      जिन लम्हों में वो आदरणीय रहे..................
                              
                              ::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

Wednesday 5 June 2013

मैं कहाँ लिखता हु















@ 2009 बस यादें सिर्फ यादें ...................
मैं कहाँ लिखता हु ,
लिखते तो है अलफ़ाज़ मेरे,
मायने ढूद ही लेते है,
जर्रा नवाज मेरे,
लाल स्याही के लिए हमने निचोड़ा खुदको,
दिल के टुकड़े भी चीख के दे रहे आवाज़ मेरे,
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::






Monday 3 June 2013

एक कवि की कविता है वो

एक कवि की कविता है 
वो रस,छन्द,अलंकार से भरी महिमा है 
वो कभी कहती है तो कभी रूठती है तो कभी मनाती है 
वोशांत निर्मल सी वो मुझे लगती है हसती है तो दिल मुस्कुराता है
कवि की रूपहली उज्ज्वल सुहास है 
वो कविता की बानगी,अजब निराली प्यारी लड़की 
को कविता लिख के कविता गाके कविता-कविता करता हू
कविता,कविता,कविता और कविता….….




THANKING U...............

Dhanyavad sir ji dr. roop chandra 'MAYANK' shastri ji.