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Wednesday 4 December 2013

मैं याद आऔंगा










@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
मैं याद आऔंगा 
जब तन्हा राहों पे जाओगे 
जितने कदम तुम उठाओगे 
कभी दरख्तों की छाओ में
सोचो मुझे सर्द सी आहों में
आँखों से जब मेरा इंतेज़ार बहाओगे
में याद आऔंगा 
जाओ जो तुम सपनो के सफर में,
जागोगे जो महकी सेहेर में
कुछ केहते केहते जो तुम खो जाओगे
मैं याद आऔंगा
मन पुकारे तुझे संग
छुपी हेई तेरे दिल में ऐसी कोई धुन
चुपके से कोई भी सरगोश हो
जागो तो फिर भी खामोश हो
ना होगा कोई पास इक होगी आस
याद आयेगी वो बात थामो जो कोई हाथ
मैं याद आओंगा
जब दिल से तुम मुस्कुराओगे
जो याद आओं तो अश्‍क़ कैसे फिर रोक पाओगे
में याद आऔंगा ...................................................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::

मैं अकेला तो नहीं था















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
मैं अकेला तो नहीं था,
अब कैसे हो गया?
मानो सब कुछ एक पल मैं खो गया,
ज़िंदगी की हकीकत सामने आई,
सब भ्रम मिट गया,
सच्चाई छाई..
क्यूं मान रहा था खुद को सबसे सुखी?
उस गुरूर के सामने अब नज़रें झुकी, 
अब चैन बस तब ही मिल सकता है,
मिट जायें इश्स दिल की डाइयरी के पन्ने सभी..
उस शोर की तो मानो मंज़िल ही ढह गयी,
अब तो बस अकेलापन अछा लगता है..
वो हंसी, वो शोर..अब हमे कहाँ जाचता है?
काश! क्यूं ना हम पहले से ही अकेले होते
क्यूं ये बोझ झूठी यादों का धोते..
ना आये अब यहाँ कोई और
मैं देखना चाहता हु अब दुनिया का छोर
इश्स दुख के लिये
खुदा मैने क्यूं वो सब सुख साहा? ? ?
मैं अकेला तो नहीं था
अब कैसे हो गया? ? ?
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

एक पल आया था















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
एक पल आया था
जब लगा मुझे
कह दूं कि
मेरे हाथों में
ये बैसाखियाँ
मेरी नहीं हैं
पर मैं झूठ नहीं बोल पाया
फिर लगा कह दूं कि
इन बैसाखियों से
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
मैं इनसे कभी नहीं हारा
पर मैं झूठ नहीं बोल पाया
चाहता था तुम्हें कहना कि
मेरे हाथ थाम सकते हैं
तुम्हारे कोमल हाथों को
किन्तु सच तो ये था
कि मेरे हाथ बंधे थे
उन बैसाखियों से
जो किसी और की नहीं
बल्कि मेरी अपनी ही थीं
मैं झूठ नहीं बोल पाया
इस तरह वो पल आया
एक पल ठहरा, बह गया
और मैं तन्हा रह गया
तुम्हारी यादों के साथ
लिये बैसाखियां हाथ
मुझे याद है जीवन ने
एक गीत मधुर गाया था
हाँ, वो एक पल आया था............................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

जलाई जो तुमने


















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
जलाई जो तुमने-
है ज्योति अंतस्तल में ,
जीवन भर उसको
जलाए रखूंगा
तन में तिमिर कोई
आये न फिर से,
ज्योतिर्मय मन को
बनाए रखूंगा.
आंधी इसे उडाये नहीं
घर कोइ जलाए नहीं
सबसे सुरक्षित
छिपाए रखूंगा.
चाहे झंझावात हो,
या झमकती बरसात हो
छप्पर अटूट एक
छवाए रखूंगा
दिल-दीया टूटे नहीं,
प्रेम घी घटे नहीं,
स्नेह सिक्त बत्ती
बनाए रक्खूँगा.
मैं पूजता नो उसको ,
पूजे दुनिया जिसको ,
पर, घर में इष्ट देवी
बिठाए रखूंगा.......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::

पश्चिम में डूबते सूरज ने














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
पश्चिम में डूबते सूरज ने
हज़ारों रंग थे बिखराए
कई तो आंखो के आगे
पहले कभी नहीं थे आए!
घड़ा चांद का आकाश में लटका
उड़ेल रहा था चांदनी
दृष्टि की सीमा तलक
ठोस, गहरे अंधेरे से बनी
बिखरी हुई थीं पहाड़ियाँ
नीरवता के बोल बोलती
उस घाटी में बिजली नहीं थी
कोई आहट, कोई आवाज़
सरसराहट भी कोई नहीं थी
ख़ामोश बिल्कुल… ख़ामोश!
धरती के उस कोने में
मैं विशुद्ध प्रकृति से मिला था
अपने कमरे की खिड़की से
अनछुए, अविकार, अविचल
निसर्ग के सच को देख रहा था
रंग, चांदनी, नीरवता
मन को हर्षित करते थे
हल्का अंधियारा, निपट एकांत
और थोड़ा-सा सूनापन
इस मन में शांति भरते थे
मैं आनंद की झील बना था
जिसमें लहर कोई ना उठती थी
संगीत भरी मन की नदिया थी
जो ना बहती थी ना रुकती थी
कई दिन बीत चुके हैं लेकिन
आज भी संध्या जब-जब
घड़ा चांद का भर-भर
चांदनी को बिखराती है
अनायास ही वो मुझे
इक खिड़की की याद दिलाती है........................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::

Friday 18 October 2013

तुम्हे तो तुम्हारी राह मालूम है
















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
तुम्हे तो तुम्हारी राह मालूम है
वही राह जो पहले से मौजूद
पक्की सड़कों से बनती है
तुम जहाँ भी जाते हो
उन्हीं सड़कों के दोनों ओर
ऊँची इमारतें बढ़ाते जाते हो
सोने-चांदी की खोज में
बड़े गढ्ढे बनाते जाते हो
इमारतें, सोना, चांदी और गढ्ढे
क्या यही तुम्हारी मंज़िलें हैं?
और मेरी मंज़िलें?…
मैं तो दिशाहीन हूँ, गंतव्य-विहीन हूँ
मेरी राहें तो, ऐ दोस्त, अक्सर
घने जंगलों से गुज़रती हैं
वहाँ, जहाँ पहले कोई नहीं गया वहीं पर…
मैं पगडंडी बनाता जाता हूँ
कुछ दीप जलाता जाता हूँ
कुछ गांव बसाता जाता हूँ
कुछ बाग लगाता जाता हूँ
कुछ फूल खिलाता जाता हूँ
क्योंकि…
मैं दिशाहीन हूँ
मैं गंतव्य-विहीन हूँ! .........................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::

सोचता हूँ उस रोज़ इक ग़ज़ल लिखूँ















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
सोचता हूँ उस रोज़ इक ग़ज़ल लिखूँ
जब मैं ज़िन्दगी को नामे-अजल लिखूँ
तुम कहते तो हो दुनिया बड़ी हसीन है
इन दुखों को किस बहार की फ़सल लिखूँ
यारों को हाले-दिल लिखा तो ये हुआ
अब नाम भी अपना संभल संभल लिखूँ
कैसा नादान हूँ छोटे से घर में बैठ के मैं
ख़त पर जगह पते की उसका महल लिखूँ
ज़िन्दगी ग़मज़दा ही सही पर मिली तो है
इसके लिये मैं सबसे पहले उसका फ़ज़ल लिखूँ....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::

यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं ना था















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं ना था
लायक़-ए-पा-बस -ए जाना क्या हिना थी मैं ना था
हाथ क्यों बांधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआ
ये सरापा शोखी-ए-रंग-ए-हिना थी मैं ना था
मैं ने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न-ओ-शबाब
हंस के बोला वो सनम शान-ए-खुदा थी मैं ना था
मैं सिसकता रह गया और मर गये फरहद-ओ-क़ैस
क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं ना था............................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ, पर तुम्हें भूला नहीं हूँ

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ, पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।
चल रहा हूँ, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती
जल रहा हूँ क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती
गल रहा हूँ क्योंकि हल्का बोझ हो जाता हृदय का
ढल रहा हूँ क्योंकि ढलकर साथ पा जाता समय का ।
चाहता तो था कि रुक लूँ पार्श्व में क्षण-भर तुम्हारे
किन्तु अगणित स्वर बुलाते हैं मुझे बाँहे पसारे
अनसुनी करना उन्हें भारी प्रवंचन कापुरुषता
मुँह दिखाने योग्य रक्खेगी ना मुझको स्वार्थपरता ।
इसलिए ही आज युग की देहली को लाँघ कर मैं-
पथ नया अपना रहा हूँ
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।
ज्ञात है कब तक टिकेगी यह घड़ी भी संक्रमण की
और जीवन में अमर है भूख तन की, भूख मन की
विश्व-व्यापक-वेदना केवल कहानी ही नहीं है
एक जलता सत्य केवल आँख का पानी नहीं है ।
शान्ति कैसी, छा रही वातावरण में जब उदासी
तृप्ति कैसी, रो रही सारी धरा ही आज प्यासी
ध्यान तक विश्राम का पथ पर महान अनर्थ होगा
ऋण न युग का दे सका तो जन्म लेना व्यर्थ होगा ।
इसलिए ही आज युग की आग अपने राग में भर-
गीत नूतन गा रहा हूँ
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।
सोचता हूँ आदिकवि क्या दे गये हैं हमें थाती
क्रौञ्चिनी की वेदना से फट गई थी हाय छाती
जबकि पक्षी की व्यथा से आदिकवि का व्यथित अन्तर
प्रेरणा कैसे न दे कवि को मनुज कंकाल जर्जर ।
अन्य मानव और कवि में है बड़ा कोई ना अन्तर
मात्र मुखरित कर सके, मन की व्यथा, अनुभूति के स्वर
वेदना असहाय हृदयों में उमड़ती जो निरन्तर
कवि न यदि कह दे उसे तो व्यर्थ वाणी का मिला वर
इसलिए ही मूक हृदयों में घुमड़ती विवशता को-
मैं सुनाता जा रहा हूँ
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।
आज शोषक-शोषितों में हो गया जग का विभाजन
अस्थियों की नींव पर अकड़ा खड़ा प्रासाद का तन
धातु के कुछ ठीकरों पर मानवी-संज्ञा-विसर्जन
मोल कंकड़-पत्थरों के बिक रहा है मनुज-जीवन ।
एक ही बीती कहानी जो युगों से कह रहे हैं
वज्र की छाती बनाए, सह रहे हैं, रह रहे हैं
अस्थि-मज्जा से जगत के सुख-सदन गढ़ते रहे जो
तीक्ष्णतर असिधार पर हँसते हुए बढ़ते रहे जो
अश्रु से उन धूलि-धूसर शूल जर्जर क्षत पगों को-
मैं भिगोता जा रहा हूँ
पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।
आज जो मैं इस तरह आवेश में हूँ अनमना हूँ
यह न समझो मैं किसी के रक्त का प्यासा बना हूँ
सत्य कहता हूँ पराए पैर का काँटा कसकता
भूल से चींटी कहीं दब जाय तो भी हाय करता
पर जिन्होंने स्वार्थवश जीवन विषाक्त बना दिया है
कोटि-कोटि बुभुक्षितों का कौर तलक छिना लिया है
'लाभ शुभ' लिख कर ज़माने का हृदय चूसा जिन्होंने
और कल बंगालवाली लाश पर थूका जिन्होंने ।
बिलखते शिशु की व्यथा पर दृष्टि तक जिनने न फेरी
यदि क्षमा कर दूँ उन्हें धिक्कार माँ की कोख मेरी
चाहता हूँ ध्वंस कर देना विषमता की कहानी
हो सुलभ सबको जगत में वस्त्र, भोजन, अन्न, पानी ।
नव भवन निर्माणहित मैं जर्जरित प्राचीनता का-
गढ़ ढ़हाता जा रहा हूँ पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।।...................................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

जरा तुम शाम ढलने दो,















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
जरा तुम शाम ढलने दो,
के सूरज को तो जाने दो,
परिंदो को तो उडने दो,
जरा तुम शाम ढलने दो,
अभी तो आसमान का रंग निखरेगा,
अभी खुसबू भी बिखरेगी,
अभी मौसम भी बदलेगा,
अभी तो चाँद निकलेगा,
अभी मंजर बदलने मे जरा सी दर बाकी है,
अभी दिल के सम्भलने मे जरा सी दर बाकी है,
चले जना,
अभी दो चार पल दो चार सदिया साथ रहने दो,
मुझे आज कुछ कहने दो,
बस अपने पास रहने दो ................................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

आज हमारे आस पास कहीं भी बचपन नजर नहीं आ रहा है















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
आज हमारे आस पास कहीं भी बचपन नजर नहीं आ रहा है,
गली, कूचे, मुहल्ले सभी खाली दिखाई पड़ते है,
जाने कहाँ गुम हो चला है वो नटखट बचपन ,
जिसके साथ हमने अनमोल पलो को बांटा था,
शायद आज बचपन को जिम्मेदारियो ने झुका दिया है,
छीन लिया उसने बुढ़िया के लाल बालो को,
तितलियाँ वीरान हो चली है,
सर्कस का भालू खो गया है,
दादी नानी की कहानिया भी खतम हो गयी है,
और आज की आधुनिकता ने बचपन को बीच बाजार मे मार दिया है,
ये वो बचपन नहीं रेह गया है,
जिसकी चाहत हम हमेसा किया करते थे,
की आज की भागम भाग,
जिंदगी को छोड़ काश,
हम लौट जाते अपने अपने बचपन मे .....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

बचपन की वो यादें














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
बचपन की वो यादें,
दोस्तो के साथ की गयी वो बातें,
याद हमे आज भी आती है,
दिन मे जाते थे स्कूल ,
और शरारत भरी राते 
टूर की! वो लम्बी सी रातें 
वो दोस्तों से कॅंटीन मे प्यारी सी बातें 
वो गॅदरिंग के दिन का लड़ना झगड़ना 
वो टीचर्स का यूहीं हमेशा अकड़ना
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई
वो स्कूल, वो शरारतें वो जवानी...
वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी.......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

कोई पार नदी के गाता

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
कोई पार नदी के गाता!
भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककड़ी के खेतों से उठकर, 
आता जमुना पर लहराता!
कोई पार नदी के गाता!
होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई,
उसकी तानों से सुख पाता!
कोई पार नदी के गाता!
आज न जाने क्यों होता मन,
सुन कर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता रहता,
सदा इसे यह गाता जाता!
कोई पार नदी के गाता! .........................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

तूने क्या सपना देखा है















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
तूने क्या सपना देखा है?
पलक रोम पर बूँदें सुख की,
हँसती सी मुद्रा कुछ मुख की,
सोते में क्या तूने अपना बिगड़ा भाग्य बना देखा है।
तूने क्या सपना देखा है?
नभ में कर क्यों फैलाता है?
किसको भुज में भर लाता है?
प्रथम बार सपने में तूने क्या कोई अपना देखा है?
तूने क्या सपना देखा है?
मृगजल से ही ताप मिटा ले
सपनों में ही कुछ रस पा ले
मैंने तो तन-मन का सपनों में भी बस तपना देखा है!
तूने क्या सपना देखा है.....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

संध्‍या सिंदूर लुटाती है














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
संध्‍या सिंदूर लुटाती है!
रंगती स्‍वर्णिम रज से सुदंर
निज नीड़-अधीर खगों के पर,
तरुओं की डाली-डाली में कंचन के पात लगाती है!
संध्‍या सिंदूर लुटाती है!
करती सरि‍ता का जल पीला,
जो था पल भर पहले नीला,
नावों के पालों को सोने की चादर-सा चमकाती है!
संध्‍या सिंदूर लुटाती है!
उपहार हमें भी मिलता है,
श्रृंगार हमें भी मिलता है,
आँसू की बूंद कपोलों पर शोणित की-सी बन जाती है!
संध्‍या सिंदूर लुटाती है.......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

रात की तन्हाई में















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
रात की तन्हाई में
दिन के उजालों से दूर
सजती है महफिल मेरी
जब तुम आते हो सपनों में
दिन भर की थकान से दूर
चंचल मन को मिलता है ठौर
आंखों में समा जाते हो तुम
क्यों कहते हैं लोग कि
अंधेरा किसी काम का नहीं
अंधेरों में ही मिलती है रोशनी
रात की तन्हाई में
तलाश होती है मेरी पूरी
जिनको ढूंढता रहा उजालों में
वो मिले मुझे रात के अंधियारे में
तुम जब आते हो सपनों में
तो मिल जाता है जीवन का लक्ष्य
बस यूं ही आते रहना सपनों में
तुम आते हो तो
बनी रहती है
हिम्मत और ताकत
क्योंकि मुझे लड़ना है
दिन के उजालों से
पाना है अपना लक्ष्य और
पहुंचना है मंजिल पर.
बस यूं ही आते रहना
रात की तन्हाई में...................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

गुज़रे दिनो की बीती बाते याद रखता हु,

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
गुज़रे दिनो की बीती बाते याद रखता हु,
खुसियो मे भी अश्को की बाराते साथ रखता हु,
मैं अब अक्सर तन्हा होकर भी तन्हा नहीं रेहता,
जहां भी राहू तेरी यादे साथ रखता हु,
कैसे भूल सकता हु मैं पता अपने घर का,
तेरे कदमो के निशान तेरी आंखे साथ रखता हु,
वो तेरा मुझसे लड़ना रूठना फिर खुद ही मान जाना,
इन शरारतो मे छुपी थी जो मोहब्बत मैं साथ रखता हू,
चले थे हम हाथ डाले हाथ मे,
वो सब राश्ते सब राहे तेरे बिछड़ने के बाद भी साथ रखता हु.................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

तुम्हारी यादों में अक्सर
















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
तुम्हारी यादों में अक्सर
कुछ चीज़ें भूल जाता हूँ...
अब तुम्हारे हिस्से का शक्कर भी
चाये में डाल के पी जाता हूँ...
तुम्हारी यादों में अक्सर...
तुम्हारा हाथ खयालों में थाम के
बंद आँखों में रास्ता पार कर जाता हूँ...
तुम्हारी यादों में अक्सर 
कुछ चीज़ें भूल जाता हूँ...
जब भी रोना चाहूं,तुम्हे तक़लीफ़ ना हो सोचके
हसने की कोशिश में लग जाता हूँ...
तुम तो रुलाने भी कहाँ आते हो अब,
चलते चलते फिर भी कहीं रुक जाता हूँ...
तुम्‍हारी यादों में अक्सर....
घर लौटते ही बेल दबाके
किस सोच में अब भी रह जाता हूँ...
तुम्हारी यादों में अक्सर
कुछ चीज़ें भूल जाती हूँ...
दिन भर कहन्यियां पढ़ता था तो
तुम कितना टांग किया करते थे...
अब कोई टोकता नहीं मगर
कहन्यियां कहाँ पढ़ पाता हूँ...
तुम्हारी यादों में अक्सर....
मुझे सजधजके देखना
तुम्हे अच्छा लगता था,
ज़माने की रस्मे तोडके
तुम्हारे रंगों में साज जाता हूँ...
तुम्हारी यादों में अक्सर
कुछ चीज़ें भूल जाता हूँ...
जब भी कोई मज़ेदार किस्सा सुनूँ,
हंसते हंसते शायद भूल पाता हूँ,
अकेले हंस रहा था सोच के
एक दफा फिर रोने लग जाता हूँ...
तुम्हारी यादों में अक्सर
कुछ चीज़ें भूल जाता हूँ...
ज़िंदगी तो जारी है अब भी मगर,
तुम्हारे बिना महसूस कहाँ कर पाता हूँ...
ज़िंदा हून फिर भी अक्सर...
जीना भी भूल जाता हूँ...
तुम्हारी यादों में.................................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

मै बाहर खड़ा बारिश में















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
मै बाहर खड़ा बारिश में 
उन हसीं लम्हों को याद करता हूँ,
पानी की टपकती बूंदों के बीच 
उन्ही यादों में फिर खो जाना चाहता हूँ.....
कभी हस्ते थे साथ कभी लड़ा करते थे,
जब उन यादों को समेटने की कोशिश करता हूँ 
तो थम सा जाता हूँ.....
और आज इस बात का अफ़सोस बना रहा हूँ,
बारिश में खड़े होकर
खुद को कम और आँखों को ज्यादा भिगो रहा हूँ.......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

ये अकेलापन....














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
ये अकेलापन....
आज का मेरा ये अकेलापन
पर मैं खुद को तन्हा नहीं मेहसूस करता
तुम आज मुझसे बोहूत दूर हो,
पर मैं तन्हा नहीं हून.
क्यूं की मेरे साथ है तुम्हारी यादें,
तुम्हारे साथ होने का एहसास...
जो की इस कमरे के हर चीज़ मे बसा है.
मेरे साथ है तुम्हारे स्पर्श का सुख...
जो मेरे रों रों मे यून ही रचे है.
और इन सब से परे...
मेरे साथ है तुम्हारे होने का आभास ...
तुम्हारा अस्तित्वा....जो की
मेरे शरीर के पोर पोर मे है
मेरे रक्त के हर कर मे है
और है तुम्हारा संग संग चलने का एहसास
जो की मुझे और तुम्हे
'मैं ' और 'तुम' ना होकर
'हम' बना दिया !............................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

वो भी क्या दिन थे
















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
वो भी क्या दिन थे
मम्मी की गोद ओर पापा के कंधे
ना पैसे की सोच ना लाइफ के फंडे 
ना कल की चिंता ना फ्यूचर के सपने
ओर अब
काल की है फिकर ओर अधूरे है सपने
मूड कर देखा तो बहुत दूर है अपने
मंज़िलो को ढूंढते हम कहा खो गये??
ना जाने क्यूं हम इतने बड़े हो गये..............
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

मैंने समझा जिसको अपना,














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
मैंने समझा जिसको अपना,
निकला वो बेगाना।
जिंदगी के सफर पर
अकेला ही चलना पड़ रहा है,
दिल में उसकी यादें लिए,
जिसको निभाना था साथ मेरा
हर बात का होती है एक वजह
बेवजह नहीं होती कोई बात
बस यही बात सोचता हूं जब
तब याद आती है पुरानी बातें
कभी अपने अहम के कारण
नहीं दिया था उसको मान
जरूरत थी जब उसको मेरी
प्रकृति का नियम है परिवर्तन
समय के साथ बदली परिस्थितियां
सोच बदली और इतनी बदली
कि वो भी बदल गया
उसको भी मिल गया सहारा
और फिर मैं रह गया अकेला
अब समझ में आता है
अब किसको दूं दोष
कभी मैंने न समझा उसको
और कभी उसने न समझा मुझे
बस अब यूं ही चला जा रहा हूं
तन्हा, अकेला, जिंदगी के रास्ते पर.......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

मुझे बस इतना केहना है,

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
मुझे बस इतना केहना है,
कभी मैं याद आऊँ तो,
कभी तन्हाई की रातैं,
तुम्हैं ज्यादा सताएं तो,
कभी तितली ना बोले तो,
और जुगनू लौट जाये तो,
कभी जब दिल भी भर जाये,
कोई जब सुन ना पाये तो,
अगर सब दोस्त साथी भी,
जो तुम से रूठ जाएं तो,
कभी जब खुद से लड़ लड़ कर,
थकन से चूर हो जाओ,
कभी चाहते हुए भी खुद,
अकेले रो ना पाओ तो,
अपनी आँखों को बंद करना,
मुझे आवाज़ दे देना,
और फिर मेरे तसव्वुर से,
जो चाहो बातैं केह देना,
मेरे कंधे पे सर रख कर
तुम जितना चाहो रो लेना,
फिर खुद मैं जब लौट जाओ तो,
उस ही दुनिया चले जाना,
मगर बस इतना केहना है ,
के जब भी दुख या खुशियों मैं
हमे दिल से पुकारो गे,
हमे तुम साथ पाओ गे ……...............
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

ख्वाबों की दुनिया सजाकर,















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
ख्वाबों की दुनिया सजाकर,
धोखे बहुत खाये हैं.
तभी एक आवाज आई,
सोच में अब क्यों पड़ा है.
जिंदगी के रास्ते में,
सोचना अभी और भी है.
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी हैं.
दूर नजरें क्यों गड़ाये ,
दुनिया चमकती रेत सी है.
पास जाकर देख उसको,
यह चमक भी खोखली है.
एक रास्ता बंद हुआ तो,
दूसरा अभी और भी है.
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी है.
कमल भी कीचड़ में खिलता,
देख उसको तू बदल जा.
कोयले की खान में भी,
हीरे की तलाश कर जा.
क्या हुआ जो न मिला तो,
एक हीरा और भी है.
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी है.
ऊँचाइयों से खफा है क्यों,
बाट चल ले ये बटोही.
तू निगाहें यूँ गड़ा ले,
नजर आये राह तेरी.
दोराहा पे खड़ा तो क्या,
एक रास्ता और भी है.
कर्म की राहों पर चल ले ,
रास्ते अभी और भी है.
जिंदगी के मोड़ टेढ़े,
चल संभलकर ये बटोही .
कर्म करके राह बना ले,
यह राह आसान होगी.
ले शपथ तू आज से ही,
कर्म ही तेरी जिंदगी है.
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी है.
क्यों भटकता मन है तेरा,
ख़्वाबों के आंसू क्यों छलकते.
इस दुनिया से बाहर आकर,
एक दुनिया फिर बसा ले.
एक अकेला तू नहीं है,
दुनिया में कई और भी है.
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी है.....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

आज हमारी बीती यादें हमें बहुत सताती है,















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
आज हमारी बीती यादें हमें बहुत सताती है,
दिन का चैन रातों की नींदें हमारी लूट जाती है.
एक दिन वो भी था जब माता लोरी हमें सुनाती थी,
भूख लगी रोता देख दूध भी हमें पिलाती थी.
दफ्तर से पापा घर लौटे बाहों में मुझे खिलाते थे,
समय मिलते ही मुझको वे झूले में झुलाते थे.
समय बिता स्कूल गए हम किताबें हमने खूब पढ़ी,
खेल-कूद सब यादें बन गयी माता लोरी भूल गयी.
डिग्री और डिप्लोमा लेकर नौकरी की तलाश रही,
नौकरी मिलते ही मुझको पैसे की खूब चाह रही.
एक दिन याद आता है जब एक लड़की मेरे पास खड़ी,
यादें बनके रह गया वो दिन प्यार हुआ और बात बढ़ी.
शादी हुयी बर्बाद हुआ में सपने बड़े संजोये थे,
सपनों की दुनिया में खोकर बीते पल ही अच्छे थे..................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

जब मैं छोटा था














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
जब मैं छोटा था
शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी
मुझे याद है मेरे घर से"स्कूल" तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था वहां
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं
फिर भी सब सूना है
शायद अब दुनिया सिमट रही है
जब मैं छोटा था
शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े, घंटों उड़ा करता था
वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल
वो हर शाम थक के चूर हो जाना
अब शाम नहीं होती,
दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है
जब मैं छोटा था
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना
वो दोस्तों के घर का खाना
वो लड़कियों की बातें, वो साथ रोना
अब भी मेरे कई दोस्त हैं
पर दोस्ती जाने कहाँ है
जब भी "traffic signal" पे मिलतेहैं "Hi" हो जाती है
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं
होली, दीवाली, जन्मदिन, नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं
जब मैं छोटा था
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट केक, टिप्पी टीपी टाप
अब internet, office, से फुर्सत ही नहीं मिलती
शायद ज़िन्दगी बदल रही है
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है
जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते"
ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है
अब बच गए इस पल में
तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में हम सिर्फ भाग रहे हैं
कुछ रफ़्तार धीमी करो
मेरे दोस्त, और इस ज़िंदगी को जियो
खूब जियो मेरे दोस्त.....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

बहुत दिनो के बाद,

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
बहुत दिनो के बाद,
जब मैं आया अपने गाव मे,
निगाहो को यकीन ना था,
की ऐसा मोड आयेगा,
समय की धूप छाव मे,
ना आम के वो पेड़ है,
ना मधभरी जवानिया,
ना झूला कोई डाल पर,
ना प्यार की कहानिया,
ना मस्तिया फजाओ मे,
ना रागनी घटाओ मे,
बहुत दिनो के बाद .....
ना पनघातो पे सोखिया,
ना हुस्न पे निखार है,
ना खेत की मुंडेर पे,
किसी को इंतेज़ार है,
ना दो दिलो की धड़कने,
है पीपलो की छाव मे,
बहुत दिनो के बाद .....
ना नैन बाड़ चलते है,
किसी हसी जवान पर,
ना कोई राधा नाचती है,
मुरलीयो की तान पर,
ना इश्क़ मे है बागपन,
ना सादगी अदाओ मे,
बहुत दिनो के बाद .....
निगाहो को यकीन ना था ,
की ऐसा मोड आयेगा .....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

ज़िंदगी ने आज मुझे उन राहों पर ला खड़ा किया















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
ज़िंदगी ने आज मुझे उन राहों पर ला खड़ा किया 
जहां मेरी ज़िंदगी के सुनेहरे पल खत्म हुए , 
पर आज फिर उन राहों पर बस मे दोस्तों के साथ शोर-गुल करते हुए 
स्कूल जाने की चाह मुझे आज भी है... 
वो असेंब्ली मे मस्ती करने और लेट आने की चाह मुझे आज भी है 
56 भोग भी आज फीके लगते हैं, 
पर वो सिंपल रोटी सब्ज़ी दोस्तों के साथ खाने की चाह मुझे आज भी है... 
यूं तो मज़ाक हम बहुतो का उड़ा चुके, 
पर क्लास मे आपना ही मज़ाक बनाने की चाह मुझे आज़ भी है
आजकल त्योहारों मे, ना जाने खुशी कहाँ खो गई है
वो क्लासस मे बॉम्ब फोड़ने की चाह मुझे आज भ़ी है
बस एक बार और स्कूल लाइफ जीने की चाह मुझे आज भी है ...............
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला.................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ..................
हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

देखता हूँ हर रोज़,आईने में अपने आप को
















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ..................
देखता हूँ हर रोज़,आईने में अपने आप को
खुश होता हूँ देखकर बाहरी रूप
इतने अरसो बाद भी
वैसा ही है,मुस्कुराता,महकता
तसल्ली सी होती है,पर अधूरी सी
पूछ लेता हूँ आईने से एक प्रश्न
क्या कभी दिखा पाएगा मुझे मेरा अंतर मन?
मेरी भावनाओ का उतार चढ़ाव ,समझाएगा मुझे
जवाब में आईने पर,बस एक स्मीत की रेशा
शायद अनकहे ही जान जाता हूँ उसकी भाषा
मेरी भावनाओ पर मुझे ही है चलना
गिरते,उठते मुझे ही संभालना
छोटिसी ज़िंदगी है,करूँगा सुहाना अपना सफ़र
हर बात का नही करूँगा रक्स
अंतरमन जब भरा होगा शांति और सयम से
तब आईना भी दिखाएगा,मेरा छूपा हुआ अक्स................................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::

हर ख़ुशी है लोगों के दामन में














@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ..................
हर ख़ुशी है लोगों के दामन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं
माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को हम मार चुके
अब उन्हें दफनाने का भी वक़्त नहीं
सारे नाम मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
गैरों की क्या बात करें, जनाब,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं
आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का वक़्त नहीं
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
की थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसानों की क्या कद्र करें
जब अपने सपनों के लिए ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
की हर पल मरने वालों को
जीने का भी वक़्त नहीं.......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::

कितने याद आते हो कभी

















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ..............
कितने याद आते हो कभी
और लगते हो बहोत अपने से
कुछ बारिश में भीगे वो लम्हे
जब बरसते है मन के आंगन पर,
चलती हूँ मैं भी
खुली हरियाली पर दामन में
यादों को समेट कर
महसूस कर लेती हूँ उन्हे कुछ पल
निगाहों से निहार कर
उछाल देता हूँ,दव की बूंदों संग
मिल जाने के लिए
आज में वापास आने के लिए,
जानता जो हूँ तुम बहुत दूर हो अब कही………..
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::