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Friday 18 October 2013

सोचता हूँ उस रोज़ इक ग़ज़ल लिखूँ















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
सोचता हूँ उस रोज़ इक ग़ज़ल लिखूँ
जब मैं ज़िन्दगी को नामे-अजल लिखूँ
तुम कहते तो हो दुनिया बड़ी हसीन है
इन दुखों को किस बहार की फ़सल लिखूँ
यारों को हाले-दिल लिखा तो ये हुआ
अब नाम भी अपना संभल संभल लिखूँ
कैसा नादान हूँ छोटे से घर में बैठ के मैं
ख़त पर जगह पते की उसका महल लिखूँ
ज़िन्दगी ग़मज़दा ही सही पर मिली तो है
इसके लिये मैं सबसे पहले उसका फ़ज़ल लिखूँ....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::

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