@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
आदमीं क्यों आज का, इतना बदलता जा रहा,
जो हकीकत है नहीं, उससे बहलता जा रहा .
झूठ सच में अब इसे, दिखता नहीं कुछ भेद है,
या खुदा! ये कौन से साँचे में ढलता जा रहा .
ये शिकायत से भरा, दिन रात करता है गिला,
देख के सुख चैन औरो का, मचलता जा रहा .
फर्क पड़ता है नहीं, आंसू बहे जो औरो के,
सुख हैं मेरे काम, यही कह कर फिसलता जा रहा.
सच से कोसों दूर होके, वक़्त से मजबूर होके,
इश्स जहाँ में रात दिन, यूं ही टहलता जा रहा.
या खुदा ये इल्तिजा है, तेरे दम से ये फ़िज़ा है,
तू "जतन" जब साथ है तो, क्यों दहलता जा रहा..................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::
जो हकीकत है नहीं, उससे बहलता जा रहा .
झूठ सच में अब इसे, दिखता नहीं कुछ भेद है,
या खुदा! ये कौन से साँचे में ढलता जा रहा .
ये शिकायत से भरा, दिन रात करता है गिला,
देख के सुख चैन औरो का, मचलता जा रहा .
फर्क पड़ता है नहीं, आंसू बहे जो औरो के,
सुख हैं मेरे काम, यही कह कर फिसलता जा रहा.
सच से कोसों दूर होके, वक़्त से मजबूर होके,
इश्स जहाँ में रात दिन, यूं ही टहलता जा रहा.
या खुदा ये इल्तिजा है, तेरे दम से ये फ़िज़ा है,
तू "जतन" जब साथ है तो, क्यों दहलता जा रहा..................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::
अरे वाह...!
ReplyDeleteआपने तो बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है।
--
बहुत सुन्द्रर कामना की है आपने!
--
लगातार लिखते रहिए लेखनी निखरती जायेगी!
--
मेरे सुभाशीष आपको...!
bahut bahut aabhaar aapka .....................
ReplyDeleteaap sabka aashirvad bas rhe mere sath................
आपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteधन्यवाद