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Saturday, 8 June 2013

जिंदगी कई बार हमें अंधेरे में लाके छोड़ देती है















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
जिंदगी कई बार हमें अंधेरे में लाके छोड़ देती है 
दर्द में बेहाल बेबस छोड़ देती है
ना मैं नज़र आता हूँ ना रास्ता नजर आता है
दूर तक बस अँधेरा नज़र आता है
तड़पता हूँ रोता हूँ
झड़ता हूँ बिगड़ता हूँ
फ़िर लाचार सा गिर जाता हूँ
ठोकरों के शहर में बिना मरहम दिल तोड देती हैं
जिंदगी कई बार अंधेरे में लाके छोड़ देती है
सोच के कुछ घोडे दौड़ने लगते है
छुटे साथी , जी को झंक्झोरने लगते है
फ़िर अचनाक से एक हीरा चमकता है
अंधेरे में रोशन सा नज़र आता है
उसे पाके मैं मचल पड़ता हूँ
उसी अंधेरे में चल पड़ता हूँ
रोशनी मिलती है हौसला मिलता है
रास्ता जैसे कदमो के साथ चलता है
बदलता कुछ नही पर सब कुछ बदलता है
जानते है वो हीरा कौन है ?
वो हीरा मैं हूँ और वो अँधेरा कोयले की खान है
जिंदगी बस कुछ देर मुझे मेरे साथ अकेला छोड़ देती है .................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

2 comments:

  1. जीवन तो ऐसा ही होता है।
    प्रियवर एक दिन में एक ही पोस्ट लगाया करो।
    लोगों को पढ़ने के लिए तो एक दिन का समय देना ही चाहिए।

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