@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
जो बुज़ुर्गों ने हम पर किये हैं,
इनके एहसान ना भूल जायें.
बन के लाठी सदा चलें हम,
फ़र्ज़ अपने हमेशा निभायें.
दूध माँ ने पीला कर है पाला,
थाम उंगली पिता ने चलाया.
रात-दिन करके दोनो ने सेवा,
खुद जागे और हमको सुलाया.
ऐसी निष्काम का बदला,
प्यार-सत्कार से हम चुकायें बन के लाठी...
तुम बनो डॉक्टर, जड्ज, मिनिस्टर,
तुम पे क़ुर्बान की पूँजी सारी.
पूज-पाठ और नमाज़ आडया की,
चाही हर पल भलाई तुम्हारी.
मारी ठोकर तो रब को रुसाया,
की जो पूजा तो लोगे दुआयाएं बन के लाठी...
शब्द उंचा कभी राम जी ने,
आगे माता-पिता के ना बोला.
सुनते आये हैं श्रावण की गाथा,
अपने जीवन में वो रंग ना घोला.
वो जो जी के गये ज़िंदगानी,
ऊस पे चल के जीवन सजायें बन के लाठी...
बीस बंदों के जिसने अकेले,
हर तरह से निभाये थे नाते.
ऊस अकेले को थोड़ा सा बोझा,
मिलके सारे उठा नहीं पाते.
राह टू ही दिखा आए खुदाया,
बोझ बंदों का बंदे उठायें बन के लाठी...
आज ये हैं जहाँ काल तुम्हे भी,
इश्स डगर से गुजरना पड़ेगा.
बीज बोये हैं जो काटने का,
कर्म तुमको भी करना पड़ेगा.
सोचो, समझो, ज़रा नौजवानों,
वक़्त रहते ही हम जाग जायें.
बन के लाठी सदा चलें हम,
फ़र्ज़ अपने हमेशा निभायें............
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::
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