दिन भी क्या दिन आया,
कुछ खुशियाँ तो कुछ दुःख लाया,
पाने को तो सबने पाया,
खोने का दुःख बस मेने पाया ।
दिखा वो अजीब सा एक साया,
जिसके पीछा किया पर
कुछ न पाया,
अपने खाली हाथो को देख
मैं यूँ फर्माया
पाने को तो सबने पाया,
खोने का दुःख बस मेने पाया ।
उस दिन दिल मैं
उदासी का ही रहा मौसम छाया,
आने की कोशिश की बाहर पर
खुद को अपना ही गवाह न पाया,
जिसे देख मैं था
रोया और बिखलाया,
पाने को तो सबने पाया,
खोने का दुःख बस मेने पाया ।
अगर वो पल हो जाता मेरा,
ख़ुशी-ख़ुशी सबको बताता,
अपना पल उसको समझकर खूब हर्षाता,
सोचता
पाने को तो सबने पाया,
खोने का दुःख बस मेने पाया ......................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::
दुःख बहुत भरी होता है, सटीक अभिव्यक्ति
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