@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
काफिरों की टोली लेकर चल दिए ह्म,
हर गमको भुलाने हर खुसि को अपनाने
मंज़िल मिली जिसे जिस जहाँ,
मोड़ कर रुख वो चल दिए
भूल गए थे मंज़िल तेय करने,
अकेले ह्म फकिर रेह गए
छूटा जो साथ सबका दिखा आगे अंधियरा
मूड कर देखा तो सब रास्ते ही बदल गए
अब इस अंधियरे को तेय करने,
अकेले हम फकिर राह गए
गिरते उठते तेय करते हैं ये फासले,
ताकी जो मंज़िल मिली तो गर्व से लौट पाएँ,
अगर नहीं मिली तो कमसे कम लोगों के यादों में ही राह जाएँ............
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::
बहुत सुंदर प्रस्तुति, बहुत शुभकामनाये
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
ReplyDeleteयादों में रहना भी कम नहीं है ...
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