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Wednesday, 21 August 2013

बुझ गयी तपते हुये दिन की अगन,















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
बुझ गयी तपते हुये दिन की अगन,
साँझ ने चुपचाप ही पी ली जलन,
रात झुक आयी पहन उजला वसन,
प्राण तुम क्यो मौन हो कुछ गुनगुनाओ,
चाँदनी के फूल तुम मुस्कुराओ,
इक नीली झील सा फैला आँचल,
आज ये आकाश है कितना सजल,
चाँद जैसे रूप का उभरा कवल,
रात भर इस रूप का जादू जगाओ,
प्राण तुम क्यो मौन हो कुछ गुनगुनाओ........................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

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