@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
माँ का आँचल,
पितह की गोद,
जिसमे बिता था बचपन मेरा रोज,
दादी की कहानी थी,
जिसमे परियाँ और रानी थी,
बाबा की हथेली से,
उनकी ऐनक भी चुरानी थी,
ना थी दिन रात की फिकर,
ना सुख दुख की कहानी थी,
दिन खेल कूद मे बीत देना,
रात को माँ के हाथो से मार खा के नींद आ जानी थी,
ना थी कोई चिन्ता,
ना फिकर थी आगे की,
बस ऐसा था बचपन मेरा,
और ऐसी ही मेरी जिन्दगानी थी,
अब ना वो दिन ना वो रावानी थी,
बस एक कहानी बनकर रह गया सब,
जिसमे मेरी जावानी थी....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव ::::::::::::: पितह की गोद,
जिसमे बिता था बचपन मेरा रोज,
दादी की कहानी थी,
जिसमे परियाँ और रानी थी,
बाबा की हथेली से,
उनकी ऐनक भी चुरानी थी,
ना थी दिन रात की फिकर,
ना सुख दुख की कहानी थी,
दिन खेल कूद मे बीत देना,
रात को माँ के हाथो से मार खा के नींद आ जानी थी,
ना थी कोई चिन्ता,
ना फिकर थी आगे की,
बस ऐसा था बचपन मेरा,
और ऐसी ही मेरी जिन्दगानी थी,
अब ना वो दिन ना वो रावानी थी,
बस एक कहानी बनकर रह गया सब,
जिसमे मेरी जावानी थी....................
No comments:
Post a Comment