@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
शहर सोया रहता है
हम किस शहर में रहते है ?
यह सवाल ही गलत है,
सवाल यह होना चाहिये कि हम कैसे शहर में रहते है ?
आज हमारे शहर की पहचान क्या है ?
यही कि शोर इस कदर बढ गया है,
कि सन्नाटे रात को भी नहीं आते,
या यह कि शहर इस कदर जंगल हुआ,
कि अब इनमे आदमखोर नहीं आते,
क्या इसी शहर पर हम इतराते है ?
मैं अपने खयालात में डूबा था,
कि शहर को सामने से गुजरता देखा,
मैने शहर से पूछा,
कल रात फुटपाथ पर पडा बच्चा भूख से रोता रहा,
और तू घोडा बेचकर सोता रहा,
शहर मुझे घूरने लगा,
मैनें अखबार उसके आगे बढा दिया,
शहर ने उडती नजरो से वह खबर पढी,
शहर लापरवाही से बोला,
यार दिन भर का थका था बिस्तर पर गिरा तो फिर कुछ नहीं पता,
तू यही समझ कि जैसे मर गया था,
अगर मुझे नीद से जगाना ही था,
तो उस भूखे बच्चे को चीखना चिल्लाना था ना,
शहर कि सफाई सुन मैं सोच मे पड गया,
मै कुछ और पूछता,
इससे पहले शहर चलने को हुआ,
उसके पास इतना समय कहाँ वह नहीं रूका,
जाते हुये शहर को मैने जोर से कहा,
तू संञाशून्य हो चुका है,
मैं समझ गया तुझे सिसकियो की जगह शोर चाहिये,
कह नहीं सकता कि शहर मेरी बात सुन पाया या नहीं,
क्योकि मेरे देखते देखते वह भागने लगा था........................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'