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Wednesday 12 June 2013

आदमीं क्यों आज का, इतना बदलता जा रहा,















@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
आदमीं क्यों आज का, इतना बदलता जा रहा,
जो हकीकत है नहीं, उससे बहलता जा रहा .
झूठ सच में अब इसे, दिखता नहीं कुछ भेद है,
या खुदा! ये कौन से साँचे में ढलता जा रहा .
ये शिकायत से भरा, दिन रात करता है गिला,
देख के सुख चैन औरो का, मचलता जा रहा .
फर्क पड़ता है नहीं, आंसू बहे जो औरो के,
सुख हैं मेरे काम, यही कह कर फिसलता जा रहा.
सच से कोसों दूर होके, वक़्त से मजबूर होके,
इश्स जहाँ में रात दिन, यूं ही टहलता जा रहा.
या खुदा ये इल्तिजा है, तेरे दम से ये फ़िज़ा है,
तू "जतन" जब साथ है तो, क्यों दहलता जा रहा..................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::

3 comments:

  1. अरे वाह...!
    आपने तो बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है।
    --
    बहुत सुन्द्रर कामना की है आपने!
    --
    लगातार लिखते रहिए लेखनी निखरती जायेगी!
    --
    मेरे सुभाशीष आपको...!

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  2. bahut bahut aabhaar aapka .....................
    aap sabka aashirvad bas rhe mere sath................

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  3. आपकी यह प्रस्तुति कल चर्चा मंच पर है
    धन्यवाद

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