@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ...............
आंधी चलकर फिर रुक जाती है
धरती हिलती नहीं भले कांपती नजर आती है
मौसम रोज बदलते हैं
उससे तेज भागते हैं, आदमी के इरादे
पर सांसें उसकी भी
कभी न कभी उखड़ जाती हैं
फिर भी जिंदगी वहीं खड़ी रहती है
भले अपना घर और दरवाजे बदलती जाती है
उधार के आसरे जीने की
ख्वाहिशें अपनी ही दुश्मन बन जाती हैं
किश्तों में मिला सुख
भला कब तक साथ निभायेगा
किश्तें ही उसे बहा ले जाती हैं.....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::::
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (13-10-2013) आँचल में है दूध : चर्चा मंच -1397 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'