@ 2013 बस यादें सिर्फ यादें ........................
आज हमारे आस पास कहीं भी बचपन नजर नहीं आ रहा है,
गली, कूचे, मुहल्ले सभी खाली दिखाई पड़ते है,
जाने कहाँ गुम हो चला है वो नटखट बचपन ,
जिसके साथ हमने अनमोल पलो को बांटा था,
शायद आज बचपन को जिम्मेदारियो ने झुका दिया है,
छीन लिया उसने बुढ़िया के लाल बालो को,
तितलियाँ वीरान हो चली है,
सर्कस का भालू खो गया है,
दादी नानी की कहानिया भी खतम हो गयी है,
और आज की आधुनिकता ने बचपन को बीच बाजार मे मार दिया है,
ये वो बचपन नहीं रेह गया है,
जिसकी चाहत हम हमेसा किया करते थे,
की आज की भागम भाग,
जिंदगी को छोड़ काश,
हम लौट जाते अपने अपने बचपन मे .....................
::::::::::::नितीश श्रीवास्तव :::::::::::
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